श्रीपीताम्बरातन्त्रम्

श्रीपीताम्बरातन्त्रम्

बगलामुखी महापूजाविधान

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी, भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।

बगला सिद्धिविद्या च मातंगी कमलात्मिका, एतादश महाविद्याः सिद्धिविद्याः प्रकीर्तिता।।


दश महाविद्या में आठवीं सिद्धविद्या बगला, श्रीकुल की हैं और इन्हे ही पीताम्बरादेवी, ब्रह्मास्त्रविद्या, ब्रम्हास्त्रस्तम्भिनी, स्तब्धमाया, प्रवृृत्तिरोधिनी, मन्त्रजीवन विद्या, प्राणि-प्रज्ञा-प्रहारिका, षट्कर्माधार विद्या आदि भी कहा जाता है। यह विद्या गोपनीय एवं परम पवित्र है। भाषा प्रभाव से इन्हे बगुला, बगला, वगुला, वल्गा, वगलामुखी या बगलामुखी कहा जाता है। वैसे वल्गा का तात्पर्य है- अंकुश लगाना। ये श्रीविद्या की नियंत्रण करने वाली शक्ति हैं। बगलामुखी स्तम्भन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं। शास्त्र में उल्लेख है कि भगवान शंकर ने देवी पार्वती को इनके आविर्भाव के कथा के विषय में बताया कि कृृतयुग में सम्पूर्ण जगत को नष्ट करने वाला तूफान आया। प्राणियो पर संकट आया देख पालनहार श्रीविष्णु चिन्तित हो गये और उन्होने सौराष्ट्र में हरिद्रा सरोवर के समीप तपस्याकर भगवती महात्रिपुरसुन्दरी को प्रसन्न किया। श्रीविद्या ने सरोवर से प्रकट होकर पीताम्बरा के रूप में उन्हे दर्शन दिया और बढ़ते हुये जलवेग तथा उत्पात का स्तम्भन किया। श्रीविद्याा की यही शक्ति वलगा, नियंत्रण करने वाली महाशक्ति हैं। पीताम्बरा परमेश्वर की सहायिका हैं और वाणी, विद्या और गति को अनुशासित करती है। ये शक्ति उपासको की वान्छाकल्पतरू हैं। दुरूह अरिष्टों एवं श़त्रुओं के दमन में इनके समकक्ष अन्य कोई विद्या नहीं है।


श्री बगला की साधना श्रीप्रजापति ने किया और इसका उपदेश सनकादि मुनियों को किया। सनत्कुमार ने श्रीनारद को, श्रीनारद ने सांख्यायन नामक परमहंस को बताया। सांख्यायन ने 36 पटलों में उपनिबद्ध कर वगलातऩ्त्र की रचना की। दूसरे उपासक श्रीविष्णु, तीसरे भगवान शिव हुये। श्रीशिव ने जमदग्नि ऋषि के पुत्र श्रीपरशुराम को ब्रह्मास्त्रविद्या प्रदान की। परशुराम ने द्रोणाचार्य को, द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को यह विद्या प्रदान किया। परशुराम से यह विद्या छल से कर्ण ने भी प्राप्त किया था। इनके अलावा महर्षि च्यवन, अश्विनीकुमार, हनुमान, अंगद, लक्ष्मण, योगेश्वर श्रीकृृष्ण, आदिशंकराचार्य, महामुनि निम्बार्क, कपिल मुनि आदि का नाम विविध धर्मग्रन्थों में बगलामुखी के सि़द्ध उपासकों के रूप में लिया गया है। श्रीपीताम्बरा की उपासना गुरुसानिध्य में रहकर सतर्कतापूर्वक, इन्द्रियनिग्रहपूर्वक सफलता प्राप्ति होने तक प्रयत्नपूर्वक करना चाहिये। री बगला की साधना श्रीप्रजापति ने किया और इसका उपदेश सनकादि मुनियों को किया। सनत्कुमार ने श्रीनारद को, श्रीनारद ने सांख्यायन नामक परमहंस को बताया। सांख्यायन ने 36 पटलों में उपनिबद्ध कर वगलातऩ्त्र की रचना की। दूसरे उपासक श्रीविष्णु, तीसरे भगवान शिव हुये। श्रीशिव ने जमदग्नि ऋषि के पुत्र श्रीपरशुराम को ब्रह्मास्त्रविद्या प्रदान की। परशुराम ने द्रोणाचार्य को, द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को यह विद्या प्रदान किया। परशुराम से यह विद्या छल से कर्ण ने भी प्राप्त किया था। इनके अलावा महर्षि च्यवन, अश्विनीकुमार, हनुमान, अंगद, लक्ष्मण, योगेश्वर श्रीकृृष्ण, आदिशंकराचार्य, महामुनि निम्बार्क, कपिल मुनि आदि का नाम विविध धर्मग्रन्थों में बगलामुखी के सि़द्ध उपासकों के रूप में लिया गया है। श्रीपीताम्बरा की उपासना गुरुसानिध्य में रहकर सतर्कतापूर्वक, इन्द्रियनिग्रहपूर्वक सफलता प्राप्ति होने तक प्रयत्नपूर्वक करना चाहिये। भगवती पीताम्बरातन्त्रम् की उपासना अन्तर्गत षटकर्म क्रिया स्तम्भन, वशीकरण, आकर्षण, विद्वेषण, उच्चाटन एवं मारण कर्म आतेे हंै। बाह्यशत्रु-विरोधियों पर विजय पाने के लिये अन्यान्य प्रयोग इसमें निहित हैं परन्तु मेरा यह मानना है कि बाह्य शत्रुओं की अपेक्षा अपने आन्तरिक शत्रुओं पर विजय पाना दुष्कर कार्य है। यदि मातृभाव से भगवती पीताम्बरा की शरणागति प्राप्त करने के लिये पुरुषार्थ किया जाए तो भगवती स्वमेव योगक्षेम वहाम्य करती हैं। दैनिक आचार-विचार, व्यवहार एवं साधना-पथ में मद, मोह, अहंकार, लोभ, क्रोध आदि ऐसे प्रबल शत्रु हैं जिन पर विजय पाने के लिये भगवती की कृपा अवश्यम्भावी है। प्रयोग विद्याओं का उद्देश्य सर्वथा लोक कल्याणकारी होना चाहिए। स्वार्थ प्रेरित प्रयोग से साधक का पतन निश्चित है अतः अपनी गुरुपरम्परा का भक्ति एवं समर्पित भाव से परिपालन करते हुये एवं मातृभाव का आश्रय लेते हुये अर्चना-उपासना करने से परमकल्याणकारी मार्ग प्रशस्त होगा- इसमें सन्देह नहीं। महाविद्याओं की बहिर्यागपूजा कर्मकाण्डरूपी उपासना का स्थूल अंग है और पूजन प्रक्रिया लगभग एक जैसे ही हैं। यन्त्रों एवं मूलमन्त्रों में भिन्नता होने के कारण आवरणार्चन तथा न्यासप्रक्रियायें पृथक-पृथक होती हैं। साधना का परम लक्ष्य तो अन्तर्याग साधना है जिसमें बगैर गुरुकृपा के सामथ्र्य पाना असम्भव है। इस पीताम्बरातन्त्रम् से आप सभी लाभान्वित हो सकेगंे, ऐसा विश्वास है। जगज्जननी माॅं से सभी के कल्याण की कामना करता हूॅं।



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